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समकालीन सादात और उल्माए किराम की प्रतिक्रियाएं

हज़रत बानी ए जामिआ सिद्दीक़ीया अल्हाज पीर सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी को अहले सुन्नत व जमात के उल्माए किराम मशाईखे इज़ाम से असीम मोहब्बत है ।उनकी सेवा और सम्मान और आदर में क्षण भर भी नहीं गंवाते। यही कारण है कि दोनों ही वर्ग अपनी महिमा और लोकप्रियता के होते हुए भी आपकी सराहना करते हुए नज़र आते हैं मुंबई अहमदाबाद राजस्थान गुजरात बल्कि दिल्ली यूपी महाराष्ट्र और दक्किन तक के बुज़ुर्गों को देखा है कि आप से शिष्टाचार मुलाक़ात तथा अनुपस्थिति मुलाक़ात के आधार पर आप की गतिविधियों और प्रमुख कार्यों से प्रभावित हो कर खुले आम सराहना करते नज़र आते हैं। अधिकतर लोगों तक केवल आपकी मज़हबी सेवाओं की प्रसिद्धता पहुंची है परन्तु गाइबाना (अनुपस्थिति) तरीक़े से उन की आप से स्नेह पूर्ण भाव देख कर चकित रह जाता है कि क्या क़ुदरत,(प्रकृति) ने उनके ह्रदय में आपकी महिमा और सम्मान रख कर लोक प्रिय बनाया है और क्या ही पैगम्बर का फरमान है (من کان للہ کان اللہ لہ) (وضع لہ القبول الارض) के प्रमाण रोशन किए हैं आइए हम उन बुज़ुर्गों के प्रतिक्रियाओं की ओर जाते हैं जिन्होंने जामिआ सिद्दीक़ीया सूजा शरीफ़ के वार्षिक समारोह दस्तारे फज़ीलत या अन्य किसी अवसर पर आ कर स्वयं इस रूहानी (आध्यात्मिक) इरफानी (रहस्यमय ) खानकाहे नकशबंदिया मुजद्दीदिय्या मज़हरिय्या को देखा और प्रत्येक व्यक्ति आम तौर ख़ास को इस ईमानी वर्षा से नहाते पाया और अपने निरीक्षणों में लिखा कि किसी मर्दे कलंदर की निगाह की कृपा है वर्ना इस सुनसान जंगल और रेगिस्तान में इस गुलशने मोहम्मदी का क्या मतलब

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