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ह़ज़रत पीर सय्यद ज़हूर अ़ली स़ाहब अशरफ़ी अलक़ादरी

मोहतमिम दारुल उ़लूम हाशमिया सुजानगढ़ राजस्थान, लिखते हैं:

نحمدہ و نصلی علی رسولہ الکریم

اما بعد فاعوذ باللہ من الشیطان الرجیم،بسم اللہ الرحمن الرحیم

आज मोरखा 21/22 जमादिल आखिरा 1416 हिजरी मुताबिक 15/16 नवंबर 1995 ई बरोज चहर शुम्बा व पंच शुम्बा बराए उर्स हज़रत सय्यद कुत्बे आलम रहमा व जश्ने दस्तार करते दारुल उलूम फैज सिद्दीकिया सुन्निया हनफिया के सिलसिले में हज़रत हैं, दारुल उलूम और खानकाह को शरीअत व तारीकत का संगम पाया, दारुल उलूम के तालबा की सलाहियात, तिलावते कुरान मजीद व तकरीर व मकालमे जात व नेअते रसूले, मनाकिबे औलिया के सरीले गीत के तौर पर सुनकर, देखकर रूहानी मुसर्रत व शादमानी हुई, यहाँ दारुल उलूम की अगरचे फलक बोस इमारत तो न पाई, मगर सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के मुताबिक फर्शे जमीन व चटाई पर बैठ कर इल्मे दीन से मुस्तफीज़ होने वाले तालबा की जमाअत को किसी भी अजीम दारुल उलूम से कम नहीं पाया, शरीके इज्लास उलमा व मशाइख और सादाते किराम जंगल में जाहिरी बातिनी मंगल देख कर हज़रत हैं सय्यदी गुलाम हुसैन शाह साहब दामत बरकातोहमुल आलिया की मुजाहिदाना काविशों और असातिज़ दारुल उलूम हाजा और दरगाह हाजा के तीन तालबा को अस्नाद व दस्तारे किरत से नवाजे जाने का हसीन मनजर देख कर हर चेहरा पर उम्मीदों के फूल महकते और मुस्कुराते नजर आए, दुआ है कि आइन्दा साल इनशाअल्ला तआला व ब फैज रसूलोहुल अला जल्ल जलालोहु व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम खत्म बुखारी शरीफ तक मकूल व मनकूल मुकम्मल तलीम दीन मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का इन्तेजाम हो जाए और यह इदारा शब व रोज मनाजिल तरक़्ीयात तै करता रहे, खानकाह आलिया का फैज जारी रहेगा, इनशाअल्लाह तआला आम्मतुलमुस्लिमीन सुन्नी हनफी भाइयों की ख़िदमत में अर्ज है कि अगर वाकई आप अपने माल को राहे खुदा और तारीके मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम पर सर्फ कर के सवाब हासिल करना चाहते हैं तो ज़रूर बिज़्ज़ूरूर अपना माली तावुन पेश कर के सवाब दारेन हासिल करें, आप का एक रुपया इनशाअल्लाह तआला इल्म बन कर क़ौम के नोनिहालों के सीनों को रौशन करेगा।


फिदाए ख़ान्क़ाह कुत्बे अ़ालम सय्यद

ज़्ाोहूर अ़ली अशरफ़ी अल क़ादरी

सुजान गढ़ 16 नवम्बर 1995

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