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शैख़ुल इस्लाम हज़रत अल्लामा सय्यद मदनी मियां

सज्जादा नशीन मुहद्दीषे आज़म हिन्द अलैहिर्रहमह कछोछा शरीफ़, लिखते हैं :

आपसे हज़रत मुर्शिद करीम संस्थापक जामिआ सिद्दीक़ीया के पुराने संबंध हैं बालासोर के जलसों में अधिकतर दोनों बुज़ुर्ग साथ होते हैं सूजा शरीफ़ आगमन के लिए बार-बार आमंत्रित किया गया परन्तु उन्हों ने अभी तक ख़िदमत का मौक़ा नहीं दीया पीर साहब क़िब्ला का अत्यंत ही इज़्ज़त और सम्मान करते हैं

गाज़िए मिल्लत पीरे तरीक़त हज़रत अल्लामा सय्यद मोहम्मद हाशमी मियां जीलानी अशरफी कछौछा शरीफ़ आप जब सूजा शरीफ़ तशरीफ़ लाए इतने बड़े बुज़ुर्ग लोक प्रिय हो कर भी जब हुज़ूर पीर साहब क़िब्ला उन से मिले तो आगे बढ़ कर आप का हार्दिक स्वागत किया और खूब ही आपस में बात चीत की और मानवता और दीन की सेवाओं और ख़िदमात से इस तरह प्रभावित हुए कि संबोधन के मध्य ही फ़रमाया कि सूजा शरीफ़ यह तो मेरा घर है यहां कैसी दावत ? अपने घर आए हैं तो घर में दावत की क्या ज़रूरत है फिर फ़रमाया सूजा शरीफ़ तो छोटा बग़दाद है जब तक हुज़ूर हाशमी मियां सूजा शरीफ़ नहीं पहुंचे थे रास्ते में टीलों को देखकर बोले कहां लेकर जा रहे हो मगर जब देखा की यहां लोगों की भीड़ से पूरा मैदान बल्कि टीला जब्ले अरफात (अरफात की पहाड़ी स्वर्ग से निकलने के बाद आदम और हव्वा के पृथ्वी पर फिर से एकत्रित होने का स्थान) का नमूना पेश कर रहा है यह देखकर खुश हुए और बोले यह टिड्डियां कहां से आ गई राकिम ( लेखक) को डीसा दावत पेश करने के लिए हज़रत मुर्शिद करीम ने उनके पास भेजा तो ख़ूब मोहब्बत से मुलाक़ात फरमाई भचाऊ गांधीधाम में हज़रत मुर्शिद करीम जलसों में आपके साथ थे अपनी गाड़ी या हज़रत मुर्शिद करीम की गाड़ी में साथ बैठ कर जलसे में जाते रहे,

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