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पीरे तरीक़त हज़रत अल्लामा सय्यद कलीम अशरफ़ साहब जीलानी

सज्जादा नशीन ख़ानकाहे अहमदीया अशरफ़ीया जाइस शरीफ़ (यू.पी.) लिखते हैं:

मौलाना पीर सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी के आमंत्रण पर जामिआ सिद्दीक़ीया और हज़रत सय्यद क़ुत्बे आलम शाह उर्फ दादा मियां जीलानी नक़्शबंदी (उन पर अल्लाह की रहमत हो) की दरगाह का दर्शन किया यह पवित्र स्थल फैज़ एवं सूफीवाद का एक केन्द्र है और इस के पहलू में चल रहा जामिआ सिद्दीक़ीया भी मज़हबी शिक्षा और रुहानी फैज़ के मोती लुटा रहा है। हज़रत पीर साहब के अत्यंत प्रयास और मेहनत और भामाशाहों की सप्रेम सेवाएं एवं सहयोग से यह जामिआ प्रतिदिन विकास की ओर अग्रसर है व धार्मिक शिक्षा के साथ दुनियावी शिक्षा और अनुशासन एवं शिष्टाचार चरित्र पर भी विशेष बल दिया जाता है।
यह जामिआ जो जंगल में एक मंगल बना हुआ है इस को मौला तआला प्रतिदिन विकास एवं उन्नति को आकाश की ऊंचाइयों के सम्मान प्रगति पर ले जाए।
मैं आशा करता हूं कि समस्त भामाशाह एवं ईमानदार अहले सुन्नत इस जामिआ का अधिक से अधिक सहयोग कर के दुनिया व आखिरत की भलाईयों से लाभाविंत होगें।

दूसरी बार
शाबान 1432 हि. को आदरणीय मित्र हज़रत पीर साहब क़िब्ला के आमंत्रण पर जामिआ सिद्दीक़ीया सूजा शरीफ़ में उपस्थित हुआ, जामिआ की गगनचुंबी बिल्डिंग व थार के रेगिस्तान में शिक्षा और अनुशासन एवं सूफीवाद के फूल बिखेर रही है इस रेगिस्तान में ऐसी बिल्डिंग देखकर अत्यंत उत्साहित हुआ।

तीसरी बार
22 शाबान 1435 हि. को अपनी उपस्थिति पर लिखते हैं कि जंगल में मंगल व रेगिस्तान में बगीचा यह दुनिया में स्वर्ग है यह जामिआ हज़रत पीर साहब की अत्यंत कोशिशों और निरंतर अभ्यासों एवं प्रयासों का परिणाम है।
प्रति वर्ष हम आते हैं तो और भी इसको विकास की ओर अग्रसर देखते हैं और मक़बरा भी अत्यंत सुन्दर है।
"खुशा मस्जिदो मदरसा ख़ानहकाहे कि दर वे बूद
क़ील व क़ाले मोहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम"

महबूबे यज़दां गौषुल आलम मख़्दूम सुल्तान अशरफ़ जहांगीर सिमनानी व सय्यद क़ुत्बे आलम शाह जीलानी के सदक़े इस संस्थान को प्रतिदिन अत्यधिक उन्नति प्रदान करे। आमीन सय्यद मोहम्मद कलीम अशरफ़ अशरफ़ी जीलानी वलीए अहद आस्ताना अशरफ़ीया अहमदिया (जाइस राय बरेली 1191154 कंधारी बाज़ार लाल बाग लखनऊ)

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