19 शअ़्बान 1433 हिजरी 10 जूलाई 2012 ई.सेह शुम्बा को जामिअ़ा सि़द्दीक़िया सोजा शरीफ़ ह़ाज़री का शर्फ़ ह़ासि़ल हुुआ। इदारा की बुलन्द व बाला फ़लक बौस इ़मारत, उ़लमा व त़लबा की कार कुर्दगी,अमरा व अ़क़ीदत मन्दों की ग़ैर मअ़्मूली वाबस्तगी देख कर बे पनाह मुसर्रत हुई। आज ही एक अ़ज़ीमुश्शान मस्जिद का इफ़्तेताह भी होने जा रहा है,स़ेहरा में गुलिस्तान की बहार यह किसी मर्दे दरवैश की नज़र कीम्या असर का नतीजा है,सरमाया दारी तो मुझे दूर दूर तक नज़र नहीं आई। दुअ़ा है कि यह चमन हमेशा हरा भरा रहे। आमीन वापस जा कर अहले मुम्बई के सामने तअ़ारुफ़ फ़रमाया,सफ़रा की ह़ाज़री में लोगों से कहा कि सोजा शरीफ़ वाले पीर स़ाहब जो बड़े पीर स़ाहब के दामाद हैं जिन को देख कर बड़े पीर स़ाहब क़िब्ला की याद ताज़ा हो जाती है। ख़ुदा के बन्दे का अख़लास़ इस क़द्र देखा कि रवांगी में यह भी न कहा कि मेरे इदारे का ख़्याल रखना, जमिअ़तुलविदा में इशाअ़ती इ़लान और तअ़ारुफ़ पेश फ़रमाया। बे ह़द ख़ुशी जताई और बारबार ह़ज़रत क़िब्ला को सलाम कहा।
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों