आज मुअर्रख़ा 18 शअ़्बान 1434 हिजरी,28 जून 2013 ई.बरोज़ जुमा मुबारका सोजा शरीफ़ ह़ाज़िरी की सअ़ादत ह़ासि़ल हुई। मुद्दते दराज़ से सुना था कि इस मुख़्तस़र सी आबादी वाली बस्ती में आले रसूल के ख़ान्दान के अ़ज़ीम फ़रज़न्द ने इ़ल्म व इ़रफ़ान की एक शमअ़ा रौशन की है जिस की रौशनी से एक अ़ालिम मुनव्वर हो चुका है,यहाँ की ह़ाज़िरी के बाद महसूस हुआ कि जो कुछ सुना था इस से बद्रेजहाँ फ़ज़ाओं यहाँ का फ़ैज़ अ़ाम व ताम है। रेत के पहाड़ों के दामन में जहाँ एक दरवैश और मर्दे क़लन्दर ह़क़ आगाह फ़रज़न्द ग़ौसे अ़ाज़म ह़ज़रत सय्यद कुत्बे अ़ालम शाह जीलानी अ़लैहिर्रहमा वर्रिज़ावान का मुबारक आस्ताना है वहीं इ़ल्म व दानिश का एक शहर बनाम जामिअ़ा सि़द्दीक़िया क़ाइम व आबाद है जिस की पुर शुकूह ए़मारतें आने वालों को दअ़्वत नज़ारा देती हैं। उस के साथ ही खुशूसियत की ह़ामिल जो चीज़ देखी वह त़लबा की अ़ाला तअ़्लीम के साथ अच्छी तरबियत है। जो आज कल अ़ाम त़ौर पर हमारी दानिश गाहों में बहुत कम है। यह तमाम चीज़ें यूँही नहीं बल्कि एक मुद्दत मुदीरा तक जिद्दो जिहद और पुर ख़ुलूस़ मसाई़ के ज़रीए मन्स़बा शहूद पर जलवा गर होने वाला इदारा फ़रज़न्द ग़ौसुलवरा स़ाह़ब सि़द्दक़ व स़फ़ा ह़ज़रत बा बरकत मौलाना सय्यद शाह ग़ाउलाम हुसैन स़ाहब क़िब्ला मुद्दज़िल्लुहुल अ़ाली का अ़ज़ीम कारनामा है जो आप ने अपने मुहिब्बीन व रुफ़्क़ा कार के ज़रीए अंजाम दिया है। यहाँ तीन सौ त़लबा के क़ियाम व तअ़ाम का मअ़्कूल इन्तेज़ाम है और दो दरजन के क़रीब असातिज़ा तअ़्लीमी उमूर अंजाम देने में मशारूफ अ़मल हैं। मौला तबारक तअ़ाला इस गुलशन इ़ल्म व इ़रफ़ान को सदा बहार फ़रमाए और यौमन फ़यौमन से तरक़िक़यात से नवाज़े।
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों