मैं 24 शाबान 1419 हि. सन 14 दिसम्बर 1998 ई. सोमवार को जामिआ सिद्दीकी़या सूजा शरीफ़ में
उपस्थित हुआ। सूजा शरीफ़ ज़िला बाड़मेर (राजस्थान) में स्थित है। यह संस्था भारत-पाक सीमा
से केवल पांच किलोमीटर दूर रेतीले धोरों के बीच में है। जहां कच्चा रास्ता था। पीर साहब
क़िब्ला के प्रयास से पक्की सड़क का निर्माण कार्य प्रगति पर है। केवल 7 कि.मी. कच्चा
रास्ता बाक़ी है। यह भाग भी पीर साहब क़िब्ला के अत्यंत प्रयास से जल्दी ही पक्की सड़क बन
जाएगी।
इस संस्था के संस्थापक पीर सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी हैं।
इन में धार्मिक सेवा की लगन का उत्साह अधिक है अपने पूर्वजों की यादों को ताज़ा कर रहे हैं।
अभी इस संस्था में पढ़ने वालों की संख्या 125 है। यह विद्यार्थी बाहर के हैं। जिन के
खाने-पीने रहने-सहने का प्रबन्ध संस्था के द्वारा किया जाता है, और बालिकाओं की शिक्षा के
लिए इस संस्था द्वारा गांव में एक मदरसा स्थापित किया गया है। इस मदरसे में पढ़ने वाली कुछ
बच्चियां बाहर की भी हैं ,एवं कुछ बच्चियां स्थानीय हैं।
जामिआ का वार्षिकोत्सव एवं दस्तकार ब़न्दी (अरबी भाषा में शिक्षा पूर्ण करने के रूप में
बंधाई जाने वाली पगड़ी) का कार्यक्रम हज़रत सय्यद क़ुत्बे आलम शाह जीलानी उर्फ दादा मियां
(इन पर अल्लाह की रहमत हो) की दरगाह के नज़दीक एवं दादा मियां के पवित्र उर्स के अवसर पर
होता है।।
वार्षिकोत्सव एवं पवित्र उर्स का दृश्य सुहाना लग रहा था, ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि फसले
बहार हो लोगों की अधीक संख्या जिधर देखो उधर लोग ही लोग दिखाई देते है।
मैं भामाशाहों से अपील करना चाहता हूं कि आप अपने पवित्र धन दौलत एवं माल अनाज से इस संस्था
को अधीक से अधीक सहयोग करते रहें।
मैं अल्लाह से प्रार्थना करता हूं कि अल्लाह तआला इस संस्था को प्रतिदिन सुरक्षित एवं आबाद
रखे।
इस संस्था से ऐसे फूल खिलते रहें जो इस संसार को अपनी सुगंध से महकाते रहें ,यह पवित्र
क्षेत्र एवं आबाद स्थल दिन दुगुनी रात चौगुनी वृद्धि एवं उन्नति करता रहे और चौदहवीं के
चांद की तरह चमकता दमकता निखरता रहे।
दूसरी बार जब
आज दिनांक 21 शाबान 1420 हि. सन 30 नवंबर 1999 ई. को उपस्थित हुआ। इस उपस्थिति में मेरे साथ
दो जाने पहचाने प्रसिद्ध विद्वान थे, एक मख़्दूम अशरफ़ सीमनां के सुपुत्र अल्लामा मौलाना
हसन मियां साहब क़िब्ला अशरफ़ी (जाएस शरीफ़) और दूसरे हज़रत मुजाहिदे दौरां सय्यद मुज़फ्फर
हुसैन साहब क़िब्ला (उन पर अल्लाह की रहमत हो) के सुपुत्र हज़रत मख़्दूम डाॅ. सय्यद मसऊद
अशरफ़ साहब क़िब्ला दोनों हमारे साथ वार्षिकोत्सव पर उपस्थित हुए। इस संस्था के चौड़े मैदान
में सुन्दर दृश्य एवं शिक्षा शिक्षण प्रशिक्षण का पक्का प्रबंधन एवं क्रमबद्ध देख कर सभी के
दिल खुश हो गए। इस रेगिस्तान में जहां सूरज के तापमान से अधीक तापमान इस संस्था के संस्थापक
के ह्रदय में धार्मिक तपिश,
अयोग्य को योग्य बनाने की तपिश,
विधार्थियों को अपने लक्ष्य प्राप्ति के प्रति तपिश,
शिक्षा के क्षेत्र में इस इलाके वालों के प्रति जागरूकता कि तपिश,
आदि यह कार्य सरल नहीं है। ऐसी संस्थाओं का संचालन करना यह सबकुछ हज़रत अल्लामा सय्यद
ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी की सेवाओं और अत्यंत प्रयासों का परिणाम है।
अल्लाह तआला हज़रत पीर साहब क़िब्ला को हमेशा आबाद रखे और पीर साहब क़िब्ला की इन सेवाओं को
क़बूल फरमाए और इस संस्था का सहयोग करने वालोें को अच्छा परीणाम दे। और इस संस्था को
प्रतिदिन सुरक्षित एवं उन्नति व आबाद रखे। आमीन
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों