logo

मुफ्ती-ए-आज़म कच्छ हज़रत अल्लामा सय्यद अहमद शाह बुखारी विंजान कच्छ

गुजरात द्वारा, लिखित है :

वह लिखते हैं अल्हाज सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी (अल्लाह की परछाई प्रति दिन उन पर हो) को मौला तआला ने अदबो अख़लाक (शिष्टाचार चरित्र ) में अत्यधिक उच्च स्थान दिया है। उच्चतम व न्युनतम वर्ग के लोग आप से मोहब्बत करने लगते हैं।
मुफ्ती-ए-आज़म कच्छ की मेहरबानियां शुरू से चली आ रही हैं। मोलाना मोहम्मद क़ाज़ी साहब से फ़रमाया, (सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह) को अल्लाह तआला ने अच्छे अखलाक़ (शिष्टाचार चरित्र) दिए है। क़यामत के दिन वह (पीर साहब) आमाल से अधिक भारी होगें।
एक बार ईद के दुसरे दिन रीति रिवाज के अनुसार पीर साहब मुफ्ती साहब से मिलने गए, परन्तु देरी हो गई तो पीर साहब ने फोन से अर्ज़ ( विन्रम ) किया अगर देरी हो गई है तो कल आए तो मुफ्ती साहब ने फ़रमाया नहीं आप आ जाओ। मैं आपके आने तक घर नहीं जा़ऊंगा, अतः पीर साहब दोपहर 12:30 बजे पहुंचे मुफ्ती साहब आधा घंटा असामान्य रूप से प्रतीक्षा कर रहे थे, मुफ्ती साहब ने लोगों को बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया था। आपके लिए दरवाज़ा खोला लोग जो बाहर खड़े थे वह भी आपके साथ अन्दर आ गए आपको गले लगाकर मुसाफा किया और फ़रमाया: पीर साहब ! मेरी ईद तो हक़ीक़त में आज हुई है।

1436 हि. इस साल को जब पीर साहब मुफ्ती साहब से मिलने गए और हालात सुनाए तो मुफ्ती साहब ने फ़रमाया: पीर साहब आपको और आपके मुरीदों और आपसे मोहब्बत रखने वालों को कोई छुए उसका मैं ज़िम्मेदार हूं। इस के जवाब में पीर साहब ने फ़रमायाः यह मेरे मुर्शिद का प्रवचन है जो में इस जुबान (वार्तालाप ) से आज मुझे सुनाया जा रहा है।

एक बार ज़ुबान मुबारक से खुद पीर साहब क़िब्ला ने बताया कि अंजार गांव का दौरा कर के मुफ्ती साहब को हालात सुनाए, तो मुफ्ती साहब खुश हो गए और रियाज़ु-सालेहीन (एक पुस्तक) मुझे भेंट की और फ़रमायाः पीर साहब! इस स्थान पर कोई कहता के आप सात हज करके आए, मैं इतना ख़ुश नहीं होता जितना इन इलाकों के दौरा करने से आपसे खुश हुआ हूं।

00 +

छात्र

00 +

कर्मचारी

00 +

सफलता के वर्ष

00 +

पूर्व छात्रों