18 शाबान 1428 हि. सन् 12 दिसंबर 2009
पीरे तरीक़त सय्यद क़ुत्बे आलम शाह जीलानी उर्फ दादा मियां (अल्लाह की उन पर रहमत हो) के उर्स व जामिआ सिद्दीक़ीया के वार्षिकोत्सव व जश्ने दस्तार बन्दी (अरबी भाषा में शिक्षा पूर्ण करने के रूप में बंधाई जाने वाली पगड़ी) पर उपस्थिति का अवसर मिला यह पवित्र स्थान सूजा शरीफ़ के नाम से प्रसिद्ध है, इस रेगिस्तान के चोड़े जंगल में इस का संचालन जो देखने को मिला है यह वास्तव में किसी अल्लाह वाले (वली) के पवित्र चरणों का कमाल है कि एक रेगिस्तान में शिक्षा व सूफीवाद का चश्मा उबल पड़ा है, जिस से एक संसार अपनी शिक्षा की प्यास बुझा रहा है यह सब हज़रत सय्यद क़ुत्बे आलम शाह जीलानी के रूहानी फ़ैज़ और पीरे तरीक़त सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी के अत्यधिक प्रयास, लगातार दोड़ भाग का परिणाम है। आज देखा जाए तो मदरसों में शिक्षा तो है मगर संस्कार नहीं के बराबर हैं, लेकिन यह संस्था चूंकि एक ख़ानक़ाह (मठ) के पहलू में है और पीर साहब क़िब्ला शिक्षा के मित्र और शिष्टाचार के धनी हैं इस लिए इन का शिक्षा व रूहानियत का प्रभाव पूरे जामिआ पर रहमत के बादल की तरह छाया हुआ है। अध्यापक और विधार्थी संस्कारी, उच्च शिष्टाचार और शिक्षा के प्रति जागरूकता, अतिथियों का आदर-सम्मान इन के रग रग में भरा हुआ है।
पीर सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी का इस इलाक़े पर विशेष अहसान यह है कि संसाधनों की कमी के पश्चात् भी इन्होंने बद अकी़दगी (सुन्नियत के सिद्धांतों का विपक्षी दल) के विपक्ष झंडा ऊंचा रखा है अगर इस संस्था व खानकाह (मठ) ने अपनी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए यात्रा प्रारंभ नहीं कि होती तो आज यह क्षेत्र बद अकी़दगी के बहाव में कब का बह कर अहले सुन्नत के हाथों से निकल गया होता, जामिआ के वार्षिकोत्सव एवं पवित्र उर्स ने भी लोगों के दिलों पर अच्छा प्रभाव डाला है।
विधार्थियों व अध्यापकों में पुस्तकों का अध्ययन (मुताअला) एवं किसी समस्या की छान बीन करने की रूचि अधिक है। पुस्तकालय का रख रखाव और लेखन शैली व भाषण शैली को इन विद्यार्थियों में विकसित किया गया है अगर मज़हबी शिक्षा के प्रसारणकर्ताओं का यह क़ाफ़िला इसी प्रकार चलाता रहा तो बहुत ही जल्द इस के प्रभाव राजस्थान से गुजरात तक दिखाई देंगे।
दूसरी बार 10 जुलाई 2012 की उपस्थिति में लिखा :
यह सेवक कई बार उपस्थित हो चुका है इस संस्था के संस्थापक हज़रत अल्लामा मौलाना सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी ने जिस तरह निःस्वार्थ सेवा एवं सोच समझ से इस जामिआ को उच्च स्थान तक पहुंचाया है, वह सोचने का विषय है हर बार एक न एक नई तकनीक से निर्मित बिल्डिंग देखने को मिलती है।
खास बात यह है कि यहां पर आने जाने के संसाधनों की उपलब्धता दिखाई नहीं देती फिर भी इस संस्था का संचालन करना आश्चर्यजनक है इस को हम सूफ़ी संत हज़रत पीर साहब का करिश्मा ही कहेंगे।
अब पता चला है कि पीरे तरीक़त हज़रत मौलाना सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी ने दूर दूर तक के इलाकों को शिक्षा सुधार के प्रचार-प्रसार को इस संस्था के साथ मिला लिया है और अब हर तरफ शिक्षा सुधार एवं शिक्षण-प्रशिक्षण की बहारें दिखाई दे रही हैं, अब आवश्यकता है कि तन मन धन से इस संस्था का भरपूर सहयोग किया जाए।
मैं आशा करता हूं कि आप इस संस्था का भरपूर सहयोग करोगे।
संस्था के भामाशाह एवं सहयोगी शुभकामनाओं के पात्र हैं जिन्होंने अपने पवित्र धन-दौलत से इस संस्था का सहयोग किया और करते रहेंगे।
अल्लाह तआला से दुआ करता हूं कि अल्लाह हम को और आपको इस संस्था के आवश्यकता के अनुसार सहयोग करने की हिम्मत प्रदान करे। आमीन
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों