अल्हम्दुलिल्लाह यह मुबारक मौक़ा हाथ आया कि सुन्नी दअ़्वते इस्लामी के ख़ादिम की हैसियत से दारुल उ़लूम फ़ैज़े सि़द्दीक़िया के सालाना जश्ने दस्तार फ़ज़ीलत और बुख़ारी शरीफ़ के रूह़ानी माह़ौल में शिरकत करने की सअ़ादत ह़ासि़ल हुई।
फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के स़ल्ले अ़ाला | झूम कर कह रही है बादे स़बा |
ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ | जो नबी के पसीने में मौजूद है |
के मिस़्दाक़ इस वीरान और ग़ैर आबाद इ़लाक़े में इ़ल्मे दीन की बहारें देख कर क़ल्बी इत़्मीनान हुआ और बे पनाह मुसर्रत ह़ासि़ल हुई कि नबी करीम स़ल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम की वरासत तक़्सीम करते हैं,पीर त़रीक़त सय्यद ग़ाउलाम हुसैन जीलानी ने बे ह़द फ़य्याज़ी से काम लेते हुए दारुल उ़लूम फ़ैज़ सि़द्दीक़िया के तवस्सुत़ से अ़वामुन्नास तक इ़ल्मे दीन की तरवीज व इशाअ़त का जो अ़ज़्म किया है अल्लाह तअ़ाला अपने ह़बीब स़ल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम के स़दक़े उन्हें इस्तिक़ामत अ़त़ा फ़रमाए फ़क़त वस्सलाम।
19शअ़्बानुलमुअ़ज़्ज़म 1433 हिजरी की ह़ाज़री में लिखते हैं: अल्हम्दु लिल्लाह सरकारे रहमत अ़ालम स़ल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम के स़दक़े व तुफ़ैल फ़ैज़ान सि़द्दीक़े अकबर रज़ियल्लाहु तअ़ाला अ़न्हु बशकल जामिअ़ा सि़द्दीक़िया देखने का मौक़ा मिला,अल्लाह अ़ज़्ज़ व जल्ल ख़ूब तरक़्क़ी अ़त़ा फ़रमाए। आमीन
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