بسم اللہ الرحمن الرحیم
نحمدہ و نصلی و نسلم علی رسولہ الکریم و علی آلہ و اصحابہ اجمعین
कि स 73 आज मुअर्रख़ा 18 शअ़्बानुल मुअ़ज़्ज़म 1427 हिजरी मुत़ाबिक़ 12 सितम्बर 2006 ई. बरोज़ सेह शुम्बा दारुल उ़लूम फ़ैज़े सि़द्दीक़िया के सालाना जलसा दस्तार बन्दी व उ़र्स कुत्बे अ़ालम अ़लैहिर्रहमा के मौक़े पर शुजाअ़ शरीफ़ ह़ाज़िर हुआ,असातिज़ा व त़लबा दारुल उ़लूम से मिलाक़ात का शर्फ़ ह़ासि़ल हुआ जिन के अख़लाक़,तवाज़ेअ़् और शरई उमूर की पास्दारी देख कर यह ऐहसास हुआ कि यक़ीनन यह ह़ज़रात अपने मुरशिदे अ़ाला और मुरब्बीए ख़ास़ पीरे त़रीक़त ह़ज़रत अल्लामा पीर ग़ाउलाम हुसैन स़ाहब क़िब्ला मुद्दज़िल्लुहुल अ़ाली की ज़ेरे क़ियादत इस ख़ित्ते अर्ज़ में एक अ़ज़ीम इस्लामी इन्क़ेलाब पैदा करने वाले हैं। यह पूरा इ़लाक़ा जिन के बाशिन्दे बज़ाहिर निहायत सादा लौह़ मअ़्लूम होते हैं और उन में दीनी व मिल्ली,शऊ़र व बेदारी का भी ऐह़सास होता है। जहाँ तअ़्लीम व तरबियत इस्लाम की ज़ारूरत का भरपूर ऐहसास होता है शायद यही वजह है कि कुत्बे अ़ालम ने अपनी आख़िरी आराम गाह के लिए यह जगह पसन्द फ़रमाई बेहम्देही तअ़ाला यह इदारा व ख़ान्वादा इस ज़ारूरत की तक्मील और कुत्बे अ़ालम अ़लैहिर्रहमा के ख़्वाब की तअ़्बीर में तन मन व धन लगे हुए हैं,अल्लाह तअ़ाला क़बूल फ़रमाए आमीन बिला शुबह पीरे त़रीक़त ह़ज़रत अल्लामा सय्यद ग़ाउलाम हुसैन स़ाहब क़िब्ला अपने पेदरे बुज़ाउर्गवार के स़ह़ी वारिस व जानशीन हैं औरالولد سرلابیہका मिस़्दाक़ भी जिन्होंने अपनी जिद्दो जिहद और मुख़्लिस़ाना कोशिशों से इस बे आब व ग्याह रेगिस्तान को इस्लामी इ़ल्म व अमल का लाला ज़ार बना दिया हर सिम्त रूहानियत ही रूहानियत नज़र आती है,अल्लाह तबारक व तअ़ाला इस ख़ान्क़ाह व दारुल उ़लूम व बरकात को अ़ाम से अ़ाम तर फ़रमाए और ह़ज़रत पीर स़ाहब का साया हम सब पर ता देर क़ाइम रखे। आमीन بجاہ حبیبہ الکریم علیہ افضل الصلوۃ والتسلیم۔
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