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मौलाना मुहम्मद रज़ा रिज़वी

दारुल उ़लूम फ़ैज़ाने ख़्वाजा बयावर ज़िला अजमेर मुक़द्दस लिखते हैं:

22शअ़्बान हिजरी को हाजी बकरत केे साथ उ़र्स सरापा अक़दस ह़ज़रत सय्यद कुत्बे अ़ालम में ह़ाज़िरी हुई तवक़्क़ो से पाया,इस बे आब व गयाह ज़मीन में जो इ़ल्म का बाग़ लगाया गया सिवाए उस के और किया कहा जा सकता है कि यह सब फ़ैज़ ह़ज़रत स़ाहिबे मज़ारे का है, और इस ख़ानवादे के चश्म व चिराग़ ह़ज़रत अल्लामा पीर सय्यद ग़ाउलाम हुसैन शाह जीलानी की सई जमील और उन की अन्थक कोशिशों का नतीजा है कि तिश्निगाने उ़लूम नबविया अपनी प्यास बुझा रहा हैं। यही बात मौलाना अ़लीमुद्दीन मकानवी ने भी तहरीर फ़रमाई है जो मुतअ़द्दिद बार सोजा शरीफ़ तश्रीफ़ लाए,बे ह़द उन्हें ह़ज़रत पीर स़ाहब से मोहब्बत है। नीज़ ह़ज़रत मौलाना मुफ़्ती मुहम्मद इस्हाक़ स़ाहब मीवाती व दीगर मुदर्रिसीन दारुल उ़लूम इस्हाक़िया के भी यही जुमले हैं।

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