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जामए़ माक़ूलातो मनकू़लात हज़रत अल्लामा मोहम्मद हाशिम नईमी व

शैख़ुल हदीष हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मोहम्मद अयूब नईमी जामिया नई़मीया मुरादाबाद (यू.पी.) लिखते है :

22 शाबान 1430 हि. सन् 3 अगस्त 2009 ई. में आलमे इस्लाम के उच्चतम विद्वान पीरे तरीक़त सूफी संत हज़रत मौलाना सय्यद ग़ुलाम हुसैन शाह साहब जीलानी के आमंत्रण पर जामिआ सिद्दीक़ीया सूजा शरीफ़ के वार्षिकोत्सव व दस्तारे फज़ीलत में उपस्थिति का सुनहरा अवसर मिला, वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम अपनी पूरी शान-बान के साथ एक ऐतिहासिक व उदाहरणीय ढंग से संपन्न हुआ, इस पवित्र अवसर पर जामिआ के विद्यार्थियों का शिक्षण प्रशिक्षण व चरित्र का निरक्षण करने का अवसर मिला, अल्हम्दुलिल्लाह इन विद्यार्थियों में पीर साहब क़िब्ला और अध्यापकों के शिष्टाचार चरित्र का भरपूर चित्रण दिखाई दिया, शिक्षा का उत्साह और अहक़ामे शरीअत की पाबंदी का शौक भरपूर था, अपने गुरुजनों का सम्मान व अकीद-ए अहले सुन्नत व मसलक की मर्यादा आदि यह समस्त विशेषताएं हज़रत पीर साहब के फ़ैज़ का आइना हैं।

दूसरी उपस्थिति 19 शाबान 1433 हि. सन् 10 जुलाई 2012 में लिखते हैं कि
जामिआ सिद्दीकी़या का शिक्षण प्रशिक्षण व विद्यार्थियों का शिष्टाचार चरित्र अधिक विकसित है, लंबी चौड़ी इमारतें व बिल्डिंगें देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि यह सब हज़रत पीर साहब क़िब्ला के फ़ैज़ का परिणाम है और जंगल में मंगल बनाना एक उदाहरणीय करीशमा है।

हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मोहम्मद अयूब साहब नईमी लिखते हैं कि जो कुछ वर्णन किया गया है इसकी वास्तविकता का में समर्थन करता हूं और इस वास्तविकता को उजागर कर देना चाहता हूं कि जिस संस्था में शिक्षा ग्रहण, शिक्षण प्रशिक्षण, शिष्टाचार मानवता आदि का धन प्रचुरता से हो उसको अपने लक्ष्य को प्राप्त करना यक़ीनी है, संस्थापक अल्लामा अल्हाज पीर ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी का शिष्टाचार चरित्र और स्वयं की कार्य प्रणाली व हर कार्य स्थल पर उपस्थित एवं बिल्डिंग के निर्माण कार्य में विकास से उजागर होता है।

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