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ह़ज़रत अल्लामा मौलाना मुहम्मद अशरफ़ क़ादरी

शैख़ुलह़दीस जामिअ़ा अकरमुलउ़लूम मुरादाबाद यूपी लिखते हैं:

ज़हे नस़ीब कि आज बतारीख़ 12 अक्तूबर 2002 ई बरोज़ पीर, पीरे त़रीक़त,गुले गुलज़ार सियादत,ह़ज़रत अल्लामा अश्शाह सय्यद ग़ाउलाम हुसैन स़ाहब मुद्दज़िल्लुहुल अ़ाली,बानी बारुल उ़लूम फ़ैज़े सि़द्दीक़िया सोजा शरीफ़ के इदारा के सालाना जलसा में ह़ाज़िरी हुई बक़ौल कसे,जंगल में मंगल,इल्म व इ़रफ़ान की इस वादी को इस मक़ौला का स़ह़ी मिस़्दाक़ पाया। इस मुबारक मौक़ा से हिन्दुस्तान के जय्यद उ़लमाए किराम व मशाइख़े ए़ज़ाम की ज़्यारत का भी शर्फ़ ह़ासि़ल हुआ। ह़ज़रत पीर स़ाहब क़िब्ला की दीनी व मिल्ली ख़िदमात ना क़ाबिले फ़रामौश हैं और सब से बढ़ कर ख़ुशी इस बात की है कि ह़ज़रत मौशाऊफ़ ने कुछ और राजस्थान में जो इस्लामी व रूह़ानी तहरीक शुरू की और जो इस वक़्त पूरे शबाब पर है तहरीक की बुनियाद मसलके अहले सुन्नत पर रखी है। यहाँ ह़ाज़िर होने के बाद ग़ैर मअ़्मूली त़ौर पर क़ल्ब व जिगर को सुकून मिला। मा शाअल्लाह यहाँ के असातिज़ा किराम व त़लबा में अख़्लास़ व मोहब्बत व जज़बा ख़िदमत उ़लमा कूट कूट कर भरा हुआ है। और इस में ह़ज़रत पीर स़ाहब क़िब्ला की कामिल तरबियत व रूहानियत कार फ़रमा है। मैं दुअ़ा गो हूँ कि मौला तअ़ाला अपने हबीबे पाक स़ाहिबे लौलाक स़ल्लल्लाहु तअ़ाला अ़लैहि वसल्लम के स़दक़े में दारुल उ़लूम को दिन दूनी रात चोगुनी तरक़्क़ी अ़त़ा फ़रमाए और पीर स़ाह़ब क़िब्ला की उ़मर में बरकतें अ़त़ा फ़रमाए। आमीन

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