आज 21 शाबान 1431 हि. सन् 2 अगस्त 2010 ई. को जामिआ सिद्दीक़ीया सूजा शरीफ़ ज़िला बाड़मेर
(राजस्थान) के द्वारा आयोजित वार्षिकोत्सव व ख़त्मे बुख़ारी शरीफ़ (एक पवित्र पुस्तक के
समाप्ति के अन्तिम पाठ) व जश्ने दस्तार बन्दी में भाग लेने के लिए उपस्थित हुआ, तो जामिआ के
पुराने और नए भवनों, पुस्तकालय एवं छात्रों के लिए छात्रावास को देख कर मेरा मन अधिक
प्रसन्न हुआ। अल्हम्दुलिल्लाह हज़रत मौलाना सय्यद सूफ़ी ग़ुलाम हुसैन शाह जीलानी ने एक बजंर
भूमि के एक विस्तृत क्षेत्र में एक दर्शनीय शिक्षा का केंद्र स्थापित किया है। भारत की
अन्तिम सीमा होने के कारण यहां पर दूर-दूर तक देखने को आबादी नहीं मिलती, इस संस्था के
आसपास कोई घर भी नहीं है। यह पीर साहब क़िब्ला के अत्यंत प्रयासों एवं कार्य क्षमता व समाज
कल्याण, शिक्षा के प्रति जागरूकता अभियान का परिणाम है जो इस रेगिस्तान में इस प्रकार
शिक्षा का क़िला खड़ा करना, जिस कि सुगंध पूरे राजस्थान को शिक्षा शिक्षण एवं शिष्टाचार
चरित्र की सुगंध से महका रहा है। यहां धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ दुनियावी शिक्षा के लिए
अलग-अलग कक्षाओं का संचालन किया गया है एवं हर शिक्षार्थी को उसके योग्यता अनुसार प्रत्येक
कला में निपुण बनाया जाता है।
विधार्थियों के लिए अलग-अलग छात्रावास में रहने के लिए कमरे,
अध्यापकों के लिए अलग-अलग अध्यापक कक्ष,
मेहमानों लिए आश्रम कक्ष, स्वास्थ्य विभाग से सम्बंधित एक यूनानी चिकित्सा, के प्रबंधन किए
गए हैं। अल्लाह तआला से प्रार्थना करता हूं कि अल्लाह तआला पीर साहब क़िब्ला की इन सेवाओं
को क़बूल फरमाए और इस संस्था को प्रतिदिन सुरक्षित एवं आबाद रखे और बूरी नज़र से बचाए। आमीन
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों