फ़की़रे यार अल्वी दरबार हज़रत पीर सय्यद कु़त्बे आलम शाह जीलानी उर्फ़ दादा मियां (अलैहिर्रमह) सूजा शरीफ़ आशीर्वादी व्यक्तित्व के आशीर्वाद से उनके सुपुत्र सम्माननीय पीरे त़रीक़त निःस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी हज़रत अ़ल्लामा मौलाना पीर सय्यद गु़लाम हुसैन शाह साहब क़िब्ला जीलानी का़दरी के निःस्वार्थ निमंत्रण पर पहली बार 21 सितंबर 2005 में और दुसरी बार 28 जून 2013 में हाज़िर हुआ।
फ़की़रे अल्वी ने का़दरी सुपुत्र के निमंत्रण को आदेश का स्तर दिया, फ़की़र ने जो कुछ सुना था उसके अतिरिक्त पाया मुझे पहली बार रात की महफ़िल,दुआ,सलाम एवम् बुखा़री शरीफ़ की समाप्ति के पवित्र कार्यक्रम में नज़दीक़ से ही नहीं बल्कि अत्यंत नज़दीक़ से पीर साहब कि़ब्ला का आशीर्वाद प्राप्त करने का मौका़ मिला। हिन्दुस्तान की आख़िरी सीमा पर दूर स्थित बजंर इलाके में एक शोभनीय विश्वविद्यालय, सम्माननीय अध्यापकों, अनुशासन प्रिय विधार्थियों को देखकर अपनी अनुभूति को रात के कार्यक्रम में इस पंक्ति के माध्यम से पेश करते हुए गर्व का अनुभव हुआः
जिस जगह झूम कर पी ले वही मैखा़ना हे।
मस्त जो ज़र्फ़ उठा ले वही पैमाना है।।
दुसरी बार जब उपस्थित हुऐ तो इनके बारे में लिखते हैं जिनके व्यक्तित्व का पहले ज़िक्र कर चुके हैं।उनकी अत्यंत कोशिशों से कुछ ही वर्षो में विश्वविद्यालय ने जो आश्चर्यजनक तरक्क़ीयां प्राप्त की यह सब का सब आशीर्वाद सरकार महबूबाने बारगाहे औलियाऐ किराम की निगाह का करिश्मा है, जंगल में मंगल की कहावत को हक़ीक़त में देखा जा सकता है।
विश्वविद्यालय के शोभनीय महल, खूबसूरत नवनिर्मित मस्जिदे सिद्दीकी़ सब कुछ इस बात का ऐलान कर रही हैं कि
"चमन में फूल का खिलना तो कोई बात नहीं
ज़हे (अच्छा) वो फूल जो गुलशन बना दे सहरा (जंगल) को ,,
परवरदिगार इस संस्था की ख़िदमात अपनी बारगाह में सरकारे गौषुल आज़म के सदके़ में क़बूल फ़रमाऐ और उनके फु़यूज़ और बरकात को आम फ़रमाऐ।
इसको बंजर इलाके़ मे अशिक्षा,बदअ़मली की अंधेरी रात में इस संस्था को न सिर्फ़ चमकते सितारे की तरह बल्कि अत्यधिक चमकते सितारे की तरह रोशन बनाऐ।और उसके संस्थापक हज़रत पीर साहब क़िब्ला और उनके सहयोगियों, अध्यापकों एवं विद्यार्थियों को दुनिया और आखिरत की भलाई नसीब करे। आमीन
छात्र
कर्मचारी
सफलता के वर्ष
पूर्व छात्रों